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साझी विरासत

दक्षिण-एशिया की साझी विरासत पर जहानआरा परवीन से एक साक्षात्कार

(जहानआरा परवीन बांग्लादेश में एक जानी मानी सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं)

इस साक्षात्कार की आवश्यकता उस समय पड़ी जब पाकिस्तान से साझी विरासत पर कार्यशाला में सहभागिता निभाने आए हुए समूह ने बांग्लादेश के साथियों के साथ वालीबॉल खेलना चाहा और बांग्लादेश के साथियों ने इंकार कर दिया। लगभग यही रवैया पाकिस्तान के साथियों के प्रति बांग्लादेश के आम नागरिकों का रहा। इसीलिए ये साक्षात्कार पाकिस्तान व बांग्लादेश के बीच नफरत व प्यार, पूर्वाग्रह, दोस्ती, सामान्य व भिन्न मूल्य और साझी विरासत के तत्वों को उभारने की दृष्टि से किया गया। इस साक्षात्कार का उद्देश्य दोनों देशों के बीच साझी विरासत, इतिहास और भावी संभावनाओं को तलाश करना था। पाकिस्तान के शांतिकर्मी महबूब सदा, परवेज मोब्बत, फॉदर सोहेल भट्टी और साजिद क्रिस्टोफर ने ये साक्षात्कार किया।

जहानआरा परवीन के अनुसार, ‘‘हमारे बड़े-बुजुर्गों, इतिहास और पाठ्य-पुस्तकों से हमें ये पता चला कि पाकिस्तान की सेना और राजनीति में बांग्लादेश के लोगों पर बहुत अत्याचार किये। यही कारण है कि आम बांग्लादेशी नागरिक पाकिस्तानियों के प्रति कड़े रवैये और नफरत का भाव रखता है। इसके चलते दोनों देश के लोगों के बीच दूरी बढ़ी है और दुश्मनी का माहौल तैयार हुआ है।’’

अपने परिवार के बारे में जहानआरा परवीन ने बताया कि उनके परिवार में तीन बहनें और एक भाई है। पिता एक अध्यापक थे और माँ घर संभालती हैं। जहानआरा परवीन का परिवार एक मध्यवर्गीय परिवार है जो कि परम्परागत् संस्कृति, मूल्यों और सामाजिक मान्यताओं से गहरा रिश्ता रखता है। उन्होंने आगे बताया, ‘‘बांग्लादेश में साक्षरता लगभग 64 प्रतिशत है और महिलाओं को काफी कुछ आज़ादी मिली हुई है। हाल के दिनों में अंर्तजातीय व अंर्तधार्मिक विवाहों में वृद्धि हुई है जो कि एक अच्छा लक्षण है और भविष्य में लोगों को जोड़ने का एक माध्यम बन सकता है।’’

पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश को एक देश के रूप में उभरने पर किए गए सवाल के जवाब में जहानआरा ने कहा, ‘‘भाषा और सांस्कृतिक पहचान मुख्य मुद्दे थे जिनके इर्द-गिर्द बांग्ला लोग एक अलग देश की मांग पर जुड़े, बाद के दिनों में अन्याय के विरोध में इस जुड़ाव ने स्वतंत्रता आंदोलन का रूप ले लिया। 1971 की घटना को हम स्वाधीनता का नाम देते हैं। हमारे माँ-बाप, स्वतंत्रता सेनानी, मीड़िया, फिल्म, थियेटर, पाठ्यक्रम और अन्य तथ्य जो कुछ हमें बताते हैं उनसे हमारे अन्दर पाकिस्तान के प्रति नफरत की भावना जगती है। ये भावना तमाम बांग्लादेश के नागरिकों में एक समान है।’’

इस्लामिक राष्ट्र (पाकिस्तान व बांग्लादेश) होने के समान मुद्दे पर प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा, ‘‘हमारी आज़ादी का मुद्दा इस्लाम नहीं था। बांग्लादेश में बड़ी संख्या में हिन्दू, बौद्ध एवं अन्य धर्मों के लोग मौजूद हैं लेकिन वे सभी बंगाली हैं। हमारा मुख्य मुद्दा भाषा व साँस्कृतिक पहचान तथा पाकिस्तान की निरंकुश सेना सत्ता से छुटकारा पाना था।’’

साझी विरासत के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘‘साझी विरासत पर प्रशिक्षण कार्यशाला ने पाकिस्तान के लोगों के प्रति मेरी धारणा बदल दी है। मेरे अंदर पाकिस्तान के लोगों के प्रति गहरी नफरत और अनेक नकारात्मक भावनाएं मौजूद थीं लेकिन सहिष्णुता, स्वीकारने की शिक्षा और साझी विरासत ने अपने विचार बदलने में मेरी बहुत मदद की। राजनैतिक तनावों से परे हमारे पास बहुत सारी साझा चीजें मौजूद हैं जोकि हमारी सबकी साझी विरासत हैं। आज मेरा अट्टू विश्वास है कि एक नई दुनिया संभव है। मेरा गहरा विश्वास है कि साझी विरासत जोकि पूरे दक्षिण-एशिया के लिए समान है, इस कार्य में हमारी सबकी मदद करेगी।’’

नई नस्ल की मानसिकता बदलने पर किये गए प्रश्न के उत्तर में जहानआरा परवीन ने कहा, ‘‘इस बात की गहरी आवश्यकता है कि सियाह राजनैतिक इतिहास की जगह नई नस्ल को साझी विरासत पर शिक्षित किया जाए। साथ ही मेरा ये भी मानना है कि मौजूदा दो पीढ़ियों के साथ ये कार्य दुष्कर है क्योंकि उनके दिमाग में 1971 की घटनाएं अभी ताज़ा हैं। लेकिन निकट भविष्य में नई नस्ल के साथ कार्य किया जाना चाहिए जिससे कि वे शांति व सद्भाव के माहौल में जी सके। इसके लिए ज़रूरी है कि शिक्षा व्यक्तिगत स्तर से शुरू होकर सामूहिकता का रूप ले और पूरा वातावरण बदलने में सहायक बने।’’

व्यक्तिगत स्तर पर जहानआरा परवीन ने बताया, ‘‘मैं दक्षिण-एशिया की साझी विरासत को आम लोगों को जोड़ने और नई नस्ल के बीच गहरे रिश्ते तैयार करने के लिए एक अस्त्रा के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। शांति बाहर से नहीं आती है। ये अंदर से ही उभरती है। आइए हम सब मिलकर शांति की तलाश करें और एक शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना करें।’’

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